साल
साल
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हर साल……
तुम कहते हो कि
तुम मुझसे
दस साल छोटी हो
और मैं हर साल
तुम्हें छूने के लिये
लाँघती चली जाती हूँ
साल दर साल…..
लेकिन दूरी फ़िर भी कम नहीं होती
इन दस सालों के गणित में
जोड़ घटाना आता ही नहीं कभी
दस साल दस साल से भी ज्यादा
लम्बे होते चले जाते हैं
एक आदरजन्य भय युक्त प्रेम
पल्लवित होता तो रहा
मेरे भीतर….तुम्हारे लिये
अनाम प्रेम के गड्ड-मड्ड से
उत्पन्न बच्चे
क्या कभी प्रेमालु हो पाऐंगे??
संशय है मुझे......
तुम्हें पूरा-पूरा पा जाने की ज़िद में
अधूरी-अधूरी जीती रही हूँ मैं
सुनो.....
मैंने तो चाहा था तुम्हारी दोस्त हो जाना
तुम्हारी प्रेमिका हो जाना
तुम्हारी अर्धांगिनी हो जाना
नहीं चाहा था मैंने
केवल कोख का हरा हो जाना