अर्पण कुमार की कविता 'अपना...और क्या'
अर्पण कुमार की कविता 'अपना...और क्या'
कविता
अपना...और क्या
अर्पण कुमार
अपना ही पैर,
अपनी ही बालकनी,
अपना ही मोबाइल,
अपनी ही नज़र,
अपना ही सुरक्षा घेरा
अपनी ही धूप
अपनी ही पकड़
और अपनी ही जकड़
अपना ही ठहराव
अपनी ही सुस्ती
अपनी ही क़ैद
अपना ही मोह
अपनी ही धरती
और अपना ही आकाश
अपना ही एकांत
अपना ही दुःख
अपना ही सुखांत
अपना ही ठिया
अपना ही किया
अपना ही जिया
अपना ही यश
और अपना ही अपयश
रोग भी अपने
भोग भी अपने
अपने तो अपने
पराए भी अपने
राग भी अपना
विराग भी अपना
सदाचार भी अपना
कदाचार भी अपना
कला भी अपनी
साहित्य भी अपना
शास्त्र भी अपने
सरोकार भी अपना
पूरब अपना
पश्चिम अपना
वाम अपना
दक्षिण अपना
पक्ष अपना
विपक्ष अपना
बिसात अपनी
खेल अपना
मंच भी अपना
पंच भी अपना
पद भी अपना
पुरस्कार भी अपना
यह दुनिया अपनी
यहाँ का कर्म अपना
कर्म का प्रतिदान अपना
बाकी सब ....
अपने मुँह मियाँ-मिट्ठू
बाकी सबका....
सपना, सपना
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