उतर न जाय कहीं
उतर न जाय कहीं
ये समन्दर उतर न जाय कहीं
क़तरा क़तरा बिखर न जाय कहीं।
ऐसी तन्हाई और तवील सफ़र
आज ख़ुद से वो डर न जाय कहीं।
रातों में बाम पर न आओ सनम
चाँद छत पर ठहर न जाय कहीं।
कोई मक़सद तो कोई मन्ज़िल हो
ज़िन्दगी यूँ गुज़र न जाय कहीं।
मुब्तला हूँ तेरी मोहब्बत में
अब ये नशा उतर न जाय कहीं।