शब का मयखाना
शब का मयखाना
शब के मयखाने मे डुबा है समा
वो समझते है नशा जाम का है
उनके दीदार से आया है सुकून आँखों में
वो समझते हैं असर आराम का हैं
ऊनके नाम से बदनाम होना
आदत है हमारी
शिकवो की कातीलना नजर से घायल होना
फितरत है हमारी,बुरा न समझो
रुह को तुम्हारे दाखिला देना जीन का काम हैं
शब के मयखाने मे डुबा है दिल
वो समझते हैं असर जाम का हैं
करवटे जो बदलो तुम
तरन्नुम की चादर ओढ लेती हो
दूर जाकर भी रुह पे सिलवटों सी रह जाती हो
अंगारों की रुह का मजा सिलवटों की शाम का है
शब के मेखाने मे डुबा है दिल
वो समझते हैं असर जाम का हैं