उसका डर
उसका डर
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सन्नाटा खिंचा था
उसके चेहरे पर
लकीरों की तरह
पलकों से आंसू
छलकने को था
गर्म तवे पर पड़ी
पानी की बूंद की तरह
होठों पर पड़ा था
पीड़ा का रंग...
पीले पड़ चुके
सूखे पत्ते की तरह
पथराई आँखों में
डर था...
मोमबत्ती की कंपकपाती
लौ की तरह.
शारीर रह-रह कर
सिहर रहा था
हवा में कांपती
परछाई की तरह
हर आहट पर
वह रह-रह कर
काँप जाती थी
फिर कोई दरिंदा
उसकी ओर
न बढ़ा चला आ रहा हो
भेड़िये की तरह