शीर्षक - कपिल शर्मा
शीर्षक - कपिल शर्मा
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सैलाब-ए-मंज़र तब भी, आज भी
तू आंसुओं का रुकना तो न बदल सका ए दोस्त,
फरिश्ता-ए-ख़ुशी तूने कारण जरूर बदल दिये।
छोटों को प्यार बड़ों को करता प्रणाम,
फरिश्ता तू ख़ुशी का, तुझे शत-शत प्रणाम।
तिलिस्म मायानगरी का सब हैरान,परेशान,
धोखेबाजी, जालसाजी में जकड़ा इंसान।
कुछ बदला हो या ना बदला,
ग़मों की महफ़िलों में चेहरे बदल गये,
सैलाब-ए-मंजर, बस कारण बदल गये।