जीजूविषा जिन्दगी
जीजूविषा जिन्दगी
इक कुम्हार की तरह, हर रोज गढ़ता हूँ
तुम्हारे ख्यालो के शब्दों को
और इक नयी अकृति देता हूँ
भले ही वक़्त गुजर रहा हो, हमारे रिश्ते का
मैं कुछ ना कुछ, तुममे नया ढूंढ ही लेता हूँ
मैं हर रोज... तुम्हारे एहसासो को पढ़ता हूँ
खामोश रहती तुम पर, मैं सारे ऱाज समझता
भले ही इक वक़्त के साथ, कुछ कमजोर हो गयी हो
मेरी नजर पर, मैं तुम्हारी आँखों में
कुछ धुंधला सा पढ़ ही लेता हूँ
मैं हर पल तुम्हारे साथ गुजरे लम्हों को संजोता हूँ
वक़्त तेज और तेज बढ़ता ही जाता है
फिर भी मैं कलाई पर घड़ी की तरह बांध लेता हूँ
भले ही अरसा गुजर रहा हो उन लम्हों का
पर मैं तुम्हारे साथ इक-इक लम्हे में
कई जिन्दगी जी रहा हूँ इक कुम्हार की तरह
हर रोज गढ़ता हूँ तुम्हारे ख्यालो के शब्दों को
और इक नयी अकृति देता
भले ही वक़्त गुजर रहा हो, हमारे रिश्ते को
मैं कुछ ना कुछ, तुममे नया ढूंढ ही लेता हूँ
ऐ जिन्दगी मे तुझे जी ही लेता हुँ