खामोश
खामोश
खामोश मेरी मोहब्बत क्यों हो गयी है
हर पल बोलने की आदत कहाँ खो गयी है
है इन्तजार सबको मेरे बोलने का
मेरी चाहते फिर क्यों गुम हो गयी है।
आँसू नही अब कोई मेरी आँखों मे
फिर भी ये खुशियां कहाँ खो गयी है
क्यों दर्द ही दर्द नजर आता है सबको
खुशियां मेरी क्यों नजर आती नहीं है।
खामोश रहना मेरी आदत तो थी
पर दिल के ज़ज़्बात बयान कर देते थे
अब वो आदत जाने कहाँ खो गयी है
खामोश मेरी मोहब्बत क्यों हो गयी है।