Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Vikash Kumar

Abstract

3  

Vikash Kumar

Abstract

जागना अपराध है

जागना अपराध है

1 min
464


इस विरह की वेदना में,

पाप पुनः की चेतना में,

दो धड़ों में बिक गई है,

आवाज मेरी थक गई है,


कौन किसको मारता है,

राजनीति हित साधता है,

मित्र मेरे घर मरा है,

देश मेरा अधमरा है,


गांधी का ये देश कैसा,

मौत का हो जश्न जैसा,

सब हिन्दू मुस्लिम हुए हैं,

देश के टुकड़े हुए हैं,


राजनीति की ऐसी घड़ी है,

सियासती कुर्सी पड़ी है,

कौन यहाँ पर सो रहा है,

मूर्ख है वह खो रहा है,


इज्जतें नीलाम हुई हैं,

बेटीयाँ शर्मसार हुई हैं,

राजनीति के कोठे सजे हैं,

सब यहाँ बैठे हुए हैं,


प्रलय का पहरा घना है,

जागना अपराध बना है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract