यादों का सिलसिला है
यादों का सिलसिला है
क्यों अब बस यादों का सिलसिला है
यूँ तो सबके लिए प्रेरणा हूँ मैं
सबके लिए एक दोस्त हूँ मैं
मैं जो हूँ सीखा देता हूँ
मैं जो हूँ सम्भाल लेता हूँ
सच है पर सारा सीखना सारा सीखाना
बस एक रात में ग़ायब सा हो जाता है
वो रात बस यादों की है
वो याद बस आसुंओं की है
वो याद बस बीते लम्हो की है
वो याद मेरे उस क़रीबी की है
जिसको याद करना ही बस मुनासिब है
उसे महसूस कर पाना ही बस मुनासिब है
उसकी जरुरत जब मुझे होने लगी
खुदा मुझसे रूठा रूठा सा था
एक पल में सब कुछ बदल दिया था
एक पल में सब कुछ छिन लिया था
अब वो मुझे सिखाने नहीं आता
अब वो मुझे समझाने नहीं आता
हाँ घड़ी में ७ हर रोज़ बजते है
पर अब कमरे में कुछ हलचल नहीं है
अब मैं रोज़ उस कमरे में नहीं जाता
क्यूं कि वो कमरा अब यादों से भरा है केवल
जैसे कि
वो रोज़ उसके घर आते ही
उसके पास जाकर बैठना
और पूरे दिन का हलचल सुनाना
ओर उसका पूरे ध्यान से सुनना
अब बातें है सिर्फ सुनने वाला वो नहीं है
अब वो मेरी हक़ीक़त नहीं है
लेकिन यादों का सिलसिला आज भी है
जैसे की
उसका मेरे रुठने पर मुझको मनाना
और मुझे अपने हाथों से खाना खिलाना
उसका मुझे जीने का सलीका सीखना
जीने का थोड़ा तरीका सीखना
मेरे केश जो उसके हाथों से सजते थे
आज कंघी लगने से भी डरने लगे है
लेकिन बस अब ये सब केवल यादें है
मुझे उन हाथों का स्पर्श याद है
मुझे उन आँखों की नमी याद है
बिलकुल आज भी वैसे ही ज़हन में है वो
मैं पढ़ता हूँ मैं सुनता हूँ
हवा के झोंके हवा की एक खनक तक
महसूस करता हूँ की इस के साथ उसकी अावाज़ हो शायद
हाँ यही है वो जिसके साथ उसका साया हो शायद
पर ये हवा ये उसकी खनक
मुझे महसूस नहीं होती
क्यों अब बस केवल यादों का सिलसिला है
यादों का सिलसिला है