सीमा
सीमा
थोड़ा कम इंसान होना शैतान होना है
थोड़ा अधिक इंसान होना देवता होना
शैतान और देवता दोनों हमारे भीतर हैं
एक-दूसरे से अभिन्न
और एक-दूसरे के पड़ोसी
जैसे हमारे फेफड़े हमारे भीतर जीती जागती एक साबुत दुनिया होती है
जब तब होते रहते हैं
जिसके दो फाँक शैतान और देवता बसाते हैं
जिनमें अपने-अपने देश
अपनी सहूलियतों के हिसाब से
शैतानों और देवताओं के इन दो देशों के बीच नो मैन्स लैंड है
जिसकी बंज़र ज़मीन पर इंसानियत की हरी घासें जहाँ-तहाँ उगी हुई हैं
कितना सुकूनदायक है उन हरी घासों के बीच बैठना
मगर कितना ज़रूरी है इसके लिए अपनीओं से बाहर आना।