भूख
भूख
हाथ में रोटी लिए भूख को देखा,
रोते सिसकते हुए पाथ को देखा,
आंसू से भरी पड़ी थी थाली,
हाय ! कटोरी पे लगी सूनी आँख बिचारी,
तन से नंगा और मन का स्वामी,
अपनी ही भूमि में मांगे वो पानी,
गैरों की ठोकरों पे पड़ा था अपना,
हाय ! क्या यही था, मेरे भारत का सपना,
हाथ में रोटी लिए...
नाम के नैनसुख, आँखों को मीचे,
मन लुभाते हैं, थोथी बातों के नीचे,
सागर निगल रहा, भूमि का टुकड़ा,
फिर भी संजो रहा, भूधर का सपना,
ऐसे कर्णधार इस देश के बेटे,
थाथी समझे इसे विदेशों को देते,
हाय ! बोझ से दबे गरीबी को देखा,
हाथ में रोटी लिए...
पढ़ा था एक था रावण, जिसे राम ने मारा,
पाप की दुनिया का था, एक हत्यारा,
दुःख दे सुख भोगे, ऐसी नीति अपनाई,
लूट-घसूट, अवनीति का अतिताई,
हाय ! देवो भूमि के मेरे भाग्य विधाता,
क्या रावण ही देने हैं, तुझे राम न भाता,
पथराई आंखों में, सूखे आँसुओं को देखा,
हाथ में रोटी लिए...
किस तरह देखे, हैं थके नैन बेचारे,
हताश सा खड़ा, प्रभु की बाट निहारे,
जगत के स्वामी, विनती इतनी सुनले,
धारण कर फिर से चक्र,
पापियों के प्राणों को हर ले
कैसे देखे ये अनहोनी ?
अभी रंगों में खून है बना नहीं पानी ,
इंकलाब का नारा लिए, फिर से निकलूंगा,
देश द्रोहियों की छाती पे, मूँग दलूँगा,
तब बनेगा मेरा देश निराला,
लाल, बाल, पाल के सपनो वाला,
हे ! मातृभूमि महान तुम्हें नमन हो,
केवल दुलारे बेटों का यही प्रण हो I