लहर
लहर
यह लहर,
कहाँ से आती है ?
कहाँ को जाती है ?
कब जागती है ?
कब सो जाती है ?
शायद वह अपने घर का रास्ता भूल,
नए घर की तलाश को जाती है,
या फिर अपनी ज़िन्दगी में आकर,
मृत्यु की तलाश में कहीं खो जाती है।
सुना है लहरें मरती नहीं,
न वह रोती हैं, न हँसती हैं,
न लड़ती हैं, न डरती हैं,
बस अपनी मंज़िल की तलाश में जीवन भर चलती हैं।
अकथनीय कहानी है इनकी,
कथनीय होती है बस इनकी चाल !
कभी डगमग - डगमग,
कभी कलकल - कलकल,
कभी सरसर - सरसर,
कभी झरझर - झरझर।
कोई नहीं कर सकता इनका सामना,
कोई नहीं करता इनसे दोस्ती,
क्योंकि यह लहर न कभी लड़ती हैं,
न किसी से डरती हैं,
और न मरती हैं,
बस मंज़िल की तलाश में चलती हैं,
चलती हैं,
और जीवन भर चलती हैं...।