कौवा-शेर
कौवा-शेर
जंगल में सारे चिड़िया पुकारे,
सभी पक्षी गुनगुनाते,
जानवर सभी हँसते खेलते,
कौवा अकेला दुःख सह लेता,
उनका गीत मधुर न होता,
आवाज उनका कर्कस लगता।
उस जंगल में शेर एक रहता,
वह चतुराई से शिकार पकड़ता,
डर के सामने कोई न आता,
देखकर सभी दूर-दूर भागता।
अब शेर आया पेड़ के नीचे,
जिस पेड़ पर वह कौवा बैठा,
गंभीर होकर शेर ने बोला,
जंगल का राजा में हूँ अकेला।
कौवा केवल काँव-काँव करता,
सुनकर शेर कहने लगा,
मैं जंगल का एक शहजादा,
थोड़ा-सा शर्म तुझे क्यूँ न आता,
देखकर मुझे सभी भागते,
हिम्मत तेरा बैठकर चिल्लाता।
सुनकर कौवा धीरे से बोला,
बड़े मत समझो तुम हो अकेला,
तुम्हारा स्थान पर तुम हो बड़ा,
मेरा स्थान पर मैं भी न छोटा,
इस जंगल पर हम सब रहते,
एक दूसरे को बराबर मानते।
इसी बात पर गुससा आया,
क्रोधित शेर कहने लगा,
औकात क्या छोटा कौवा,
मेरा ताकत तुझे नहीं पता,
कहकर शेर ने छलांग लगाया,
एक टहनी को नीचे गिराया।
कौवा बेचारा मुख न खोले,
शेर को देखकर विष्ठा त्यागे,
शेर के शिर पर टपक के गिरे,
शेर आसमान में देखने लगे,
काँव-काँव करता कौवा उड़ता चला।