कविता लिखूं
कविता लिखूं
सोचा लिखूँ
कविता
गढ़ दूँ
कुछ बिम्ब
जो हो नये
कभी नीम
कभी शहद
कभी आँख
कभी छुवन
कभी एहसास
कभी पास
कभी दूर
कभी एक
आस कि
कभी बहती नदी
कभी ठहरा पोखर
कभी खेत ,कभी नहर
कभी काज़ल
कभी बिंदी
कभी बहते
कभी बिखरते
कभी अपने
कभी पराये
कभी मैं
कभी तुम
उफ़्फ़्फ़
फ़िर तुम
सिर्फ़ तुम
अब कोई
बिम्ब नहीं
बस तुम