संवादहीनता
संवादहीनता
आश्चर्य नहीं मुझे आज के दौर की
संवादहीनता पर
संवेदनहीन होती जा रही मनुष्यता
से आस भी नहीं
आकुल व्याकुल प्राणी अस्त व्यस्त
सा परिवेश
सृष्टि पतन की ओर , और सृष्टि को
भास ही नहीं ...
विस्मृत सभ्यताएं ... दुखद
तिरस्कृत संस्कार ... दुखद
संस्कृति, इतिहास के पन्नों पर
सम्बन्ध, व्याल से रेंग रहे
इक दूजे को, बस झेल रहे
समय रहते अब... सम्भलना होगा
संवेदना तभी बचेगी जो संवाद होगा
अन्यथा बस हाथों को मलना होगा
गोबिन्द चान्दना
आश्चर्य नहीं मुझे आज के दौर की
संवादहीनता पर
संवेदनहीन होती जा रही मनुष्यता
से आस भी नहीं
आकुल व्याकुल प्राणी अस्त व्यस्त
सा परिवेश
सृष्टि पतन की ओर, और सृष्टि को
भास ही नहीं ...
विस्मृत सभ्यताएं... दुखद
तिरस्कृत संस्कार... दुखद
संस्कृति, इतिहास के पन्नों पर
सम्बन्ध, व्याल से रेंग रहे
इक दूजे को, बस झेल रहे
समय रहते अब... सम्भलना होगा
संवेदना तभी बचेगी जो संवाद होगा
अन्यथा बस हाथों को मलना होगा
गोबिन्द चान्दना