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Pradeep Soni प्रदीप सोनी

Abstract Comedy

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Pradeep Soni प्रदीप सोनी

Abstract Comedy

हम जोड़ेंगे

हम जोड़ेंगे

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वो कहते है हम तोड़ेंगे

ये बसता मुल्क हजार में तोड़ो
धर्म पे तोड़ो जात पे तोड़ो
मजहब की हर बात पे तोड़ो
तोड़ो इनको कर्मो पर 
और रंग भेद औकात पे तोड़ो
जो टूटे से ना जुड़ पाए
तुम इन्हें हर इक हालात पे तोड़ो
 
 
हम कहते है हम छोड़ेंगे
मजहब की हर बात को छोड़ो
छोड़ो जात पात का लालच
झूठ-गलत के साथ को छोड़ो
छोड़ो वक़्त पुराने को
जो बीत गयी उस बात को छोड़ो
छोड़ो सारी उलझन को
तुम जो तोड़े हर बात को छोड़ो
 
 
और हम भी मिलकर तोड़ेंगे
भूख-कुपोषण-अज्ञान को तोड़ो
तोडना है तो घमंड को तोड़ो
पाखंडी के पाप को तोड़ो
तोड़ो हर दिल मे बसे दर्द को
मजहब की दीवार को तोड़ो
फिर नया सवेरा हो जायेगा
तुम बिखरी काली रात को तोड़ो
 
 
ये चार दिनों का मेला दुनिया
तुम दीपसभी चिंता को छोड़ो
ये दिल भी इक दिन जुड़ जायंगे
तुम इंसा को इंसा से जोड़ो
 

 


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