देखा एक ख़्वाब मैंने
देखा एक ख़्वाब मैंने
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देखा एक ख़्वाब मैंने
बस तुम थी
भीगी पलकें थी, ठिठुरते नाज़ुक होंठ
निगाहें भी सच्चाई कब तक छुपाती
दिल ने जो खाई चोट ।
कहा कुछ भी नहीं
पर बातें दिल में जाने कितनी अनकही ।
ज़ुबाँ पर तेरे लफ्ज़ नहीं थे
हम इतने कभी खुदगर्ज़ नहीं थे ।
भरोसा दर्मिया का दिल से निभाया
आज जालिम,
दिल पर मँडरा रहा वही दर्मियाँ का साया ।
देखा एक ख़्वाब मैंने
इजाज़त माँगी फिर दिल बसर कर जाने की
दूरियाँ मिटाने की
आँसुओं को तेरे
मेरे दिल की गंगा में बहाने की ।
अचानक,
ओझल हो गई तेरी छवि
भोर के उजाले में
फिर डूबता यह दिल
अँधियारों के प्यालों में ।