पहचान
पहचान
खुद ही से आंकिये
गहराई
खुद ही तैरने की दिशा
तय कीजे
यह जिन्दगी भी
इक नदी है बाबू
किनारे से उतरिये
फिर तैरा कीजे।
कान के कच्चे
आँख के अंधे
मतलब परस्तों
से घिरे लोगों को
ज़रा पहचाने
काठ की चप्पल से
अंगारों पे सफ़र
नहीं किया करते।
जिनको भरोसा है
तकदीर पे
वे शौक से
किनारों पे रहें
मगर यह भी तय है
कि दूसरा छोर
पहले छोर से
खुद नहीं
मिला करते।
वे बकौल
खुदा होंगे
जो बैठे हैं आज
सिरमौर बन
हम भी इक
जिस्म के
इक रूह के
मालिक हैं
और फिलहाल
बखूबी ज़िंदा हैं।