गुलदस्ते ग़ज़ल
गुलदस्ते ग़ज़ल
होते ग़मों से लोग परेशान देखे हैं।
बिकते ख़ुशी के वास्ते ईमान देखे हैं।
पत्थर की मूर्ति भी भला बोलती कभी।
किसने निकलते संग से भगवान देखे हैं।
कश्ती को डूबना था मेरी डूब ही गई।
लेकिन भँवर में फंस के भी तूफ़ान देखे हैं।
आशिक़ है नाम के ये नहीं हौंसला ज़रा।
थोड़े से ग़म में देते हुए जान देखे हैं।
इंसान हमको ढूंढे से भी मिल नहीं सके।
बस्ती में हमने हिन्दू मुसलमान देखे हैं।