Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Mohanjeet Kukreja

Abstract Drama Tragedy

4.8  

Mohanjeet Kukreja

Abstract Drama Tragedy

इंतज़ार

इंतज़ार

1 min
1.7K


कभी सोने का

कभी जगने का

पीने का... खाने का

कभी स्कूल जाने का

कभी लौट के आने का

पढ़-लिख के कुछ बनने का


अपने पांव पर खड़े होने का

फिर शादी का... घर बसाने का

किस पल का ना इंतज़ार किया उसने !


और अब हमारी बारी है...


बेबस, लाचार बैठे

इंतज़ार हम भी कर रहे हैं...

मगर ज़िंदगी से थक-हार कर

मौत के बिस्तर पर बेसुध पड़ी मां की

लड़खड़ाती हुई बोझिल सांस के थमने का !!





Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract