इंतज़ार
इंतज़ार
कभी सोने का
कभी जगने का
पीने का... खाने का
कभी स्कूल जाने का
कभी लौट के आने का
पढ़-लिख के कुछ बनने का
अपने पांव पर खड़े होने का
फिर शादी का... घर बसाने का
किस पल का ना इंतज़ार किया उसने !
और अब हमारी बारी है...
बेबस, लाचार बैठे
इंतज़ार हम भी कर रहे हैं...
मगर ज़िंदगी से थक-हार कर
मौत के बिस्तर पर बेसुध पड़ी मां की
लड़खड़ाती हुई बोझिल सांस के थमने का !!