चलता हूँ दो कदम
चलता हूँ दो कदम
1 min
7.4K
चलता हूँ दो कदम हमें,
चल के जाने तो दे,
ऐ जिंदगी खुद को भी,
ज़रा आज़माने तो दो।
डूबना ही मुक्क़दर है,
तो फ़िक्र ऐ फ़िज़ूल,
खुद जा के दरिया में,
हमें उतर जाने तो दे।
शाम तलक ही सही,
हम लौटेंगे ज़रूर ही,
इस मुसाफिर को ज़रा-सा,
भटक जाने तो दे।
सोचते है दो घड़ी को,
अब सुस्ता लें फ़िज़ूल,
कोई दो घड़ी को कुछ,
बीते हुए जमाने तो दे।
वो क्या है आसमां जो,
नाप ही न दिया जाए,
रुक जवाँ परिंदे को,
पंख ज़रा फैलाने तो दे।