Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Somesh Kulkarni

Crime Inspirational Others

4  

Somesh Kulkarni

Crime Inspirational Others

न्याय

न्याय

2 mins
14.3K


ऐसा ही इक गाँव था जिसमें चला मुकदमा कन्या पर,

चोरी की थी जिसने घर में, उस बुढ़िया की हत्या पर।

चीखी चिल्लाई वो लड़की कहती मैं निर्दोष हूँ ,

किसी ने उसकी एक ना सुनी न्याय कहे मदहोश हूँ।


बंदी बना लिया उसको और चली तलाशी घर घर में,

बचा सँभलते होश वो अपना, पड़ा दरोगा अनबन में।

शक था उसको हर व्यक्ति पर जिससे बुढ़िया झगड़ी थी,

नाम लिया लड़की का अंत की साँसो मैं, बात बिगड़ी थी।


चोरी बुढ़िया ने की थी और सजा भी उसको मिल थी चुकी,

खून से लतपत थी अफसोसी सच पूरा वह बोल न सकी।

सज़ा दी गई उसको फाँसी न्यायदेवता विवश हुई,

लड़की ने था झकझोंरा कुछ ना उनको, बेबस हुई।


वक़्त रात का था उसके पीछे पड गए थे हत्यारे,

दौड़ रही थी गली-गली नेक न थे अरमाँ सारे।

परिभाषा संयोग की क्या है जान गई वो बुढ़िया से,

घर था उसी का उसने छुपा लिया है उसे दया से।


मार दिया सबने बुढ़िया को पर ना उसने बतलाया,

साँस चल रही आखिरी उसकी गाँव ने आके सहलाया।

उसी समय निकली चुपके से लड़की घर के द्वार से,

सीधा गया उसी पे शक ठहराया मुजरिम सार से।


रोता रहा दरोगा कुछ ना कर पाया निष्पाप का,

जब सच आया सामने उसके असर हुआ उस खाप का।

पकड़ लिया उनको बुढ़िया ही मार दी जिनके काम ने,

गलती से हो गई थी हत्या उससे सबके सामने।


बाद में चला पता बुढ़िया को साबित जिसने गलत किया,

अतः उसी लड़की को मिल गई सजा, बराबर न्याय हुआ।

चिंता के कारण बुढ़िया ने मरते समय लिया था नाम,

बचा लो उसको कहने वाली थी वो तब तक मिला अंजाम।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Crime