भिखारिन
भिखारिन
गली-गली, हर मोड़ खड़ी,
हर नुक्कड़ पर दुखियारी
सड़क किनारे, पुल के नीचे,
रहने को विवश बेचारी।
लोगों के ताने झेल रही,
बेजान बनी, सुकुमारी।
आज़ाद देश में सिसक रही,
देवी सी अबला नारी।
संघर्षशीलता में उसने,
छोड़ी ये दुनियादारी।
जाति-धर्म से ऊपर उठकर,
एक दुनिया नई सँवारी।
मंदिर, मस्जिद या गुरूद्वारा,
फिर चर्च बना मनोहारी।
दिन बाँट लिए हर मजहब के,
हर रंग रंगी बेबस नारी।