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Rashmi Prabha

Drama

5.0  

Rashmi Prabha

Drama

निराकार आकार

निराकार आकार

1 min
334


मैं ईश्वर नहीं 

पर ईश्वर मुझमें है 

वह रोज हथौड़ी छेनी लेकर 

अपना निर्माण करता है। 


बचे खुचे पत्थर को भी वह नहीं फेंकता 

विचारों के गुम्बद बनाता है 

और सतर्कता की घण्टी टाँगकर 

कुछ नए सामान लाने निकल पड़ता है ... 


हर दिन वह अपनी संरचना बदलता है 

ताकि उसकी संभावना कभी खत्म न हो 

वह वाणी बनकर 

मेरे गले की नसों में प्रवाहित होता है 


मेरे एकांत में 

मुझे मेरी मायावी शक्तियों तक ले जाता है !

मैं भयभीत 

वह स्तब्ध !


त्रिनेत्र की शक्ति क्यूँ नहीं है जाग्रत 

सोच सोचकर 

वह तराशता है खुद को 

चाहता है,


मैं बन जाऊँ जौहरी 

हीरे को पहचान सकूँ  

मैं उसकी कारीगरी के आगे नतमस्तक 

 खुद से अजनबी 

युगों से परे 


युगवाहक को लिए 

मूक होती हूँ 

रात गए छेनियों की आवाज़ आती है 

मन के कारागृह में 

एक मूर्ति बनती रहती है 

प्रबल हो जाती है चेतना 


मूसलाधार विचारों के मध्य 

निराकार आकार 

यज्ञ करता है 


 ....... अग्नि में तपकर मैं 

कुंदन होती जाती हूँ 

स्वाहा होता जाता है स्वार्थ 

मोक्ष नज़दीक होता है 

रह जाता है निनाद 

- शून्य का !


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