दोस्त
दोस्त
ये जो स्कूल
और कॉलेज के फ्रेंड होते हैं न,
बड़े अजीब होते हैं।
भागते उम्र में
ये हमें, हमारा
पहले वाला चेहरा याद दिला जाते हैं।
वो बचपना
वो मस्ती
सब, सब...
इनसे जब मिलो तो
कुछ उम्र तो कम
हो ही जाती है,
साथ ही
कुछ पल भी थम सा जाता है,
एक नई ऊर्जा मिल जाती है।
वो हल्की नोंक-झोंक
वो शरारत,
वो मस्ती
रूठना
मनाना जो अब किस्से बन चुके थे,
उनको जीवन्तता मिलती है,
इन दोस्तों से।
बेशक अब सब व्यस्त हैं,
अकेले कहाँ अब
साथ जीवनसाथी का,
जो सम्पूर्णता प्रदान करता है।
साथ बच्चों का
जो अस्तित्व को साकार कर
अमरत्व देता है।
खाली पलों को भरने के लिए
परिवार और रिश्तेदार होते हैं।
कुछ स्थान रहता ही नहीं
किसी के लिए शेष,
जिम्मेदारियों को चाबी के
गुच्छे-सा संभालती
चलती है अनवरत...
रस्म-रिवाज कितने कर्मकांड,
कितना कुछ निभाना होता है
विवाह के बाद,
सब को साथ लेकर
भागती रहती है जिंदगीभर।
कितना वक्त बदल जाता है न,
छोटी-सी चोट में उफ़्फ़!
निकल जाता था,
ये छोटी-छोटी अदा
कब गम्भीरता में बदल जाती है,
ये बड़ी से बड़ी समस्याओं में भी
मुस्कुराने का हुनर सीख लेती है।
फिर भी
दिल के किसी कोने में,
दोस्तों को जिंदा रखती है,
किसी के पुराने से
स्लैम बुक में
अपने अतीत को ढूंढती,
किसी के पोस्ट में लाइक नहीं,
पर बिजी हूँ
किचन में काम करते-करते
ये तो बोलती है...
जो एहसास दिला जाता है
कि कोई बदला नहीं...
बल्कि दोस्तों के लिए
कभी कोई बदलता ही नहीं,
एक खास-सा रिश्ता होता
काफी है इतना,
मेरी मुस्कुराहट के लिए,
उन सबसे
मैं आज यही कहती हूँ,
यार ये जिंदगी है
कोई इम्तिहान नहीं,
व्यस्त रहो
पर मस्त भी...
मुस्कुराते रहो हर पल।