है नारी तू अभिमान भी कर
है नारी तू अभिमान भी कर
हे नारी तू अभिमान भी कर...
तू है संसार का गौरव चिन्न,
तू कपटी मानव का मान भी कर...
काट भी दे तू शीश को धड़ से,
और माँ सा जीवन दान भी कर...
हे नारी तू अभिमान भी कर...
तू है स्नेह ममता का गौरव चिन्ह,
तू झांसी जैसा शमशान भी कर...
तुझमें ही नीव रखी सृष्टि की,
हे नारी तू अपना सम्मान भी कर...
हे नारी तू अभिमान भी कर...
मैं तेरा क्या व्यख्यान करूँ,
तू अंतरिक्ष जैसा गुणगान भी कर...
नाम है तेरे वैष्णो, काली और रूदाली,
तू प्रियतमा बन फोज का नाम भी कर...
है नारी तू अभिमान भी कर...
तनहा शायर हूँ