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Sushil Sharma

Abstract

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Sushil Sharma

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महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप

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राणा सांगा का ये वंशज
रखता था रजपूती शान।
कर स्वतंत्रता का उद्घोष,
वह भारत का था अभिमान।

मान सिंह ने हमला करके
राणा जंगल दियो पठाय।
सारे संकट क्षण में आ गए
घास की रोटी दे खवाय।

हल्दी घाटी रक्त से सन गई,
अरिदल मच गई चीख पुकार।
हुआ युद्ध घनघोर अरावली,
प्रताप ने भरी हुंकार।

शत्रु समूह ने घेर लिया था,
डट गया सिंह सा कर गर्जन।
सर्प सा लहराता प्रताप,
चल पड़ा शत्रु का कर मर्दन।

मान सिंह को राणा ढूंढे,
चेतक पर बन के असवार।
हाथी के सिर पर दो टापें,
रख चेतक भर कर हुंकार।

रण में हाहाकार मचो तब,
राणा की निकली तलवार
मौत बरस रही रणभूमि में,
राणा जले हृदय अंगार।

आँखन बाण लगो राणा के,
रण में न कछु रहो दिखाय।
स्वामिभक्त चेतक ले उड़ गयो,
राणा के लय प्राण बचाय।

मुकुट लगा कर राणा जी को,
मन्नाजी दय प्राण गँवाय।
प्राण त्याग कर घायल चेतक,
सीधो स्वर्ग सिधारो जाय।

सौ मूड़ को अकबर हो गयो
जीत न सको बनाफर राय।
स्वाभिमान कभी नही छूटे
चाहे तन से प्राण गँवाय।


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