नदी को बहने दो
नदी को बहने दो
नदी को बहने दो
नदी को बहने दो
नदी को बहने देने से ही निकलता है रास्ता
नदी में सिर्फ पानी ही नहीं बहता
बहती नदी में बहता है दुनिया भर का प्रेम भी
और जब बहती है दुनिया
तो बहती दुनिया में बहता है दुनिया भर का दुःख और सच भी
बहती नदी में बहता है तभी
बहती दुनिया का सुसंगत सच भी
किंतु एक सच्चा-सच्चा सच है ये भी
कि क्यों हाज़िर-नाज़िर फ़िर-फ़िर
और क्यों कायम-मुकाम विसंगतियां अनेकों अनेक?
नदी को बहने दो
सूर्य को बढ़ने दो
शेर को गुर्राने दो
बर्फ पिघलने से ही नदी, नदी में नाव, नाव में कवि
कवि विचारों का किंतु हासिल तत्काल
नहीं कुछ भी...?
में बांचता हूं मेरा मैं
मैं सोचता हूं योजनाएं नित नई-नई
और हारता हूं मेरा मैं
मैं चुनता हूं मित्रताएं नित नई-नई
और हारता हूं मेरा मैं
उफ़! ये ग्रीष्म, ग्रीष्म का प्रकोप
पता नहीं कहां ले जाएगा मुझे?
मुझे एक टुकड़ा बर्फ़ चाहिए
मुझे एक गिलास शराब चाहिए
मुझे एक मुट्ठी बंद थोडा प्रेम चाहिए
मेरी मुट्ठी समुद्र नहीं, छोटा सा चुल्लू है
नदी को बहने दो