कोई हमनवा कैसे दिखे...
कोई हमनवा कैसे दिखे...
हर कोई लालायित कितना, कैसे भी हो कालजयी
इस चक्कर में ठेला-ठाली, धक्का-मुक्की मची रही
नदी वही है, लहर वही है, और खिवैया रहे वही
लेकिन अपनी नाव अकेली बीच भंवर में फंसी रही
बार-बार समझाते उनको हम भी हैं तुम जैसे ही
बार-बार उनके भेजे में बात हमारी नहीं घुसी
छोड़ो तंज़-मिजाज़ी बातें, आओ बैठो गीत बुनें
खींचा-तानी करते-करते बात वहीं पे रुकी रही
कोई बावफ़ा कैसे दिखे
कोई हमनफस कैसे दिखे
कोई हमनवा कैसे रहे
बतलाए मुझको कोई तो
कोई बावफा कैसे दिखे...
तुम बदलते रूप इतने
और बदलकर बोलियाँ
खोजते रहते हो हममें
वतनपरस्ती के निशाँ..
हम प्यार करने वाले हैं
हम जख्म खाने वाले हैं
हम गम उठाने वाले हैं
हम साथ देने वाले हैं
अकीदे का हर इम्तेहां
हम पास करते आये हैं
किसी न किसी बहाने
तुम टांग देना चाहते हो
जबकि हमारे काँखे पे
देखो सलीब कब से है...
झूठ की खेती
वे झूठ के दाने बोते हैं
वे झूठ की खेती करते हैं
जब झूठ की फसलें पकती हैं
वे सच-मुच में खुश होते हैं
फिर झूठ-मूठ ही मिल-जुलकर
हर आने-जाने वाले को
खाने की दावत देते हैं...
वहां झूठ के लंगर लगते हैं
वहां झूठ के दोना-पत्तल में
भर-भर के परोसी जाती हैं
झूठ-मूठ की पूरी-सब्जी
झूठ-मूठ के माल-पूए...
इस झूठ के काले धंधे में
कई सेवक मोटे- तगड़े से
लट्ठ- हथियारों से लैस हुए
जब कहते सबसे लो डकार
और करो
हमारी जय-जयकार
तो होड़ मचाते आमंत्रित
दुबले-पतले-मरियल सारे
मिलकर करते जय-जयकार
बने रहें हमारे सरकार...!
क्या ऐसा भी दिन आएगा
जब भेद खुलेगा झूठों का
जब झूठे धिक्कारे जायेंगे
जब झूठे सच में भागेंगे...
कहाँ जाएँ...
भाग कर कहाँ जाएँ
हर जगह तुम्हें पायें
जब से किया किनारा मैंने
दूरियां हैं घटती जाएँ
तुम क्या जानो कैसे-कैसे
बेढंगे से ख्वाब सताएं
गुपचुप-गुपचुप, धीरे-धीरे
माजी के लम्हात रुलाएं
चारों ओर भिखारी, डाकू
मांगें और लूट ले जाएँ
तुम सा दाता कहाँ से पायें
वापस तेरे दर पर आयें
मसीहा...
एक आंधी सी उठे है अन्दर
एक बिजली सी कड़क जाती है
एक झोंका भिगा गया तन-मन
इस बियाबां में यूँ ही तनहा मैं
कब से रह ताक रहा हूँ उसकी...
वो जो बौछार से टकराते हुए
एक छतरी का आसरा लेकर
इक मसीहा सा बन के आता है
मुझको भीगने से बचाता है...
हाँ...ये सच है बारहा उसने
मेरे दुःख की घड़ी में मुझको
राहतें दीं हैं....चाहतें दीं हैं....
और हर बार आदतन उसको
सुख के लम्हों में भूल जाता हूँ
वो मुझे दुआओं में याद करता है
और मैं दुःख में उसे याद करता हूँ....
उत्तर खोजो श्रीमान जी...
एकदम से ये नए प्रश्न हैं
जिज्ञासा हममें है इतनी
बिन पूछे न रह सकते हैं
बिन जाने न सो सकते हैं
इसीलिए टालो न हमको
उत्तर खोजो श्रीमान जी....
ऐसे क्यों घूरा करते हो
हमने प्रश्न ही तो पूछा है
पास तुम्हारे पोथी-पतरा
और ढेर सारे विद्वान
उत्तर खोजो ओ श्रीमान...
माना ऐसे प्रश्न कभी भी
पूछे नहीं जाते यकीनन
लेकिन ये हैं ऐसी पीढ़ी
जो न माने बात पुरानी
खुद में भी करती है शंका
फिर तुमको काहे छोड़ेगी
उत्तर तुमको देना होगा..
मौन तोड़िये श्रीमान जी.....
लेकिन...
तुम क्या जानो जी तुमको हम
कितना 'मिस' करते हैं...
तुम्हें भुलाना खुद को भूल जाना है
सुन तो लो, ये नहीं एक बहाना है
खट-पट करके पास तुम्हारे आना है
इसके सिवा कहाँ कोई ठिकाना है...
इक छोटी सी 'लेकिन' है जो बिना बताये
घुस-बैठी, गुपचुप से, जबरन बीच हमारे
बहुत सताया इस 'लेकिन' ने तुम क्या जानो
लगता नहीं कि इस डायन से पीछा छूटे...
चलो मान भी जाओ, आओ, समझो पीड़ा मेरी
अपने दुःख-दर्दों के मिल-जुल गीत बनाएं
सुख-दुःख के मलहम का ऐसा लेप लगाएं
कि उस 'लेकिन' की पीड़ा से मुक्ति पायें...
सब कुछ वैसा ही हो जाये
सब कुछ वैसा ही हो जाये
जैसा हमने चाहा था
जैसा हमने सोचा था
जैसा सपना देखा था
सब कुछ वैसा ही हो जाये
लेकिन वैसा कब होता है
कुछ पाते हैं, कुछ खोता है
ठगा-ठगा निर्धन रोता है
थका-हारा, भूखा सोता है
तुम हम सबको बहलाते हो
नाहक सपने दिखलाते हो
अपने पीछे दौड़ाते हो
गुर्राते हो, धमकाते हो
और हमारे गिरवी दिल में
बात यही भरते रहते हो
सब कुछ वैसा हो जायेगा
जैसा हम सोचा करते हैं
जैसा हम चाहा करते हैं
हमने बात तुम्हारी मानी
लेकिन देखो गौर से देखो
इन बच्चों की आँखों में
शंकाओं के, संदेहों के
कितने बादल तैर रहे हैं
बेशक बालिग़ होकर ये सब
सपनों के उन हत्यारों का
सारा तिलस्म तोड़ डालेंगे...
बेशक अच्छे दिन आयेंगे
तब हम सब मिल जुल कर गायेंगे
गीत विजय के दुहराएंगे....
चले आओ जहां हो तुम
दर्द रह-रह के बढ़ता है
और दिल डूबा जाता है
नब्ज थम-थम के चलती है
दिल जोरों से धड़कता है
बीमारी बढ़ती जाती है
फिक्र है खाए जाती है
सलाहें खूब मिलती हैं
दवाएं बदलती जाती हैं
दुआएं काम नहीं आतीं
करें क्या ऐसे में हमदम
कहाँ से चारागर पायें
मत्था किस दर पर टेकें
कहाँ से तावीजें लायें
तुम्हें मालूम है फिर भी
छुपा कर रक्खे हो नुस्खे
न लो अब और इम्तेहां
चले आओ जहां हो तुम
तुम्हारे आते ही हमदम
बीमारी भाग जायेगी...