एक गुड़िया परायी होती है
एक गुड़िया परायी होती है
About Poem :
आज भी हमारे देश में लड़कियो की उपेछा की दृष्टि से देखा जाता है.. उनको पराया समझा जाता है , समाज आज भी अपने पुराने रीती रिवाजो में उलझा हुआ है.वो हमारे हर रिश्तों में चाहे एक माँ हो या , बहन ,संगिनी या दोस्त हर रिश्तों में स्नेह बरसाती है, जीवन के किसी रंगों में कुछ विचारें उठी जो आप से मुझसे सबसे जुड़ी है …
---- Poem ----
नन्ही नन्ही कदमें जब आंगन में चलती है,
कभी पायल की रुनझुन यूँ कानो में पड़ती है,
वो बचपन की किलकारी मन में समायी होती है ,
एक गुड़िया परायी होती है !
लगर झगर के बच्चो से जब ऑंखें उसकी रोती हैं,
उस मनहारी सूरत को आंसू जब भिगोती है,
तब लपक झपक के एक ममता सीने से पिरोती है,
एक गुड़िया परायी होती है !
मन की बातें मन में रखकर ,
जब वह घुट घुट के जीती है ,
कुछ न कहकर सब सहकर,
जब वो थोरी सी हँस लेती है,
एक गुड़िया परायी होती है !
हर रिश्तों को वो तो दिल से यूँ संजोती है,
कभी आँचल में ,
कभी ममता में ,
कभी बंधन में,
कभी उलझन में बस स्नेह ही स्नेह बरसाती है,
अपने खातिर वो बस,
एक गुड़िया परायी होती है !
कहने को हम कह देते सब रीत पुरानी होती है,
फिर भी इस जग की एक रोज नयी कहानी होती है,
एक गुड़िया परायी होती है !
Part - 2
बचपन की निश्छल अल्हरता को, को कभी झुँझलाहट बनते देखा !
जो खुल के भी कभी रोते थे, उसे चुप हो के सिसकते देखा !
किसी आँगन में जो खेला करती, उन खाली पाँवों में पायल को बँधते देखा !
उस दुपहर में जिद कर कितनी कभी उस आँचल में सिर रख सोती !
आज भरी दुपहरी बीती .. बीती पहर अब तक बस कंठ भिगोते देखा !
थे साथ संग तो इक रिश्ता, अब आयाम वो मुश्किल था, बेमन से जाते हाथ छूड्डा के, हमने ना कभी उन्हें है देखा !
किसी द्वंद में जब खामोश पड़े, खुद राहों को चुनते उसे है देखा !
उम्र पड़ाव की दहलीजों पर, जीवन को बदलते देखा !
प्रणय प्यार के बंधन को, नियती से बिखरते देखा,
काँच के कुछ टुकड़ों पर, लाल रंग को मिटते देखा !
कभी रिश्तों ने किया दूर उसे, कभी खुद रिश्तों से दूर परे, जीवन की किसी पड़ाव पर आके, गुड़िया को फिर परायी बनते है देखा !