बढ़ रहे हैं मेरे कदम
बढ़ रहे हैं मेरे कदम
बढ़ रहे हैं मेरे कदम,
हर पल बिन रुके,
बिन थके, बस तुम्हारी ओर ।
पर तुम्हें तो पता है न,
समय का पहिया,
हर बार मुझे,
छोड़ जाता है ।
अनजानी, अनदेखी,
उन गलियों में,
दूर-दूर तक जहाँ,
तेरी खुशबू नहीं,
तेरे निशान भी नहीं ।
भटकती रही हूँ,
हर पल इन,
गलियों में,
बिन रुके, बिन थके ।
ढूँढती रही हूँ,
तुझे, तेरे निशान,
पर तुम्हें तो पता है न,
समय का पहिया,
हर बार तुझसे दूर,
कहीं छोड़ जाता है ।
पर जिद है इन कदमों की,
चाहत है इस मन की,
कि हर पल,
बिन रुके, बिन थके ।
बढ रही हूँ बस,
तुम्हारी ओर,
पर तुम्हें तो पता है न,
समय का पहिया ।