कहानी तेरी मेरी
कहानी तेरी मेरी
जाने मेरी कितनी बातों का
फ़ायदा तूने उठाया है।
मुझे हर बार गुमराह कर
अपना हुक्म चलाया है।
मेरी भी तो आदत थी
हर बात पर भावूक हो जाना।
और तूने अपना रोना रोकर
मुझे ग़ुलाम बनाया है।
मैंने तुझपे करके विश्वाश
किस राह चलूँ जो प्रश्न किया।
तो तूने मन के द्वन्द को भाँप
दो राहे पर लाकर खड़ा किया।
अच्छा था तेरी नज़रों में
जब चुपचाप तुझे सुनता रहा।
ज्यूँ ही मैंने आवाज़ उठाई,
तूने ख़ुदगर्ज़ मुझे ठहरा दिया।
जाने क्यों सहता आया हूँ
ए ज़िंदगी ,तेरी बेरुख़ी को।
और तूने मेरी ये फ़ितरत जान
कठपुतली सा मुझे नचाया है।
अब मेरी भी ज़िद है कि, तेरे
हट के आगे ना घूटने टेकेंगे।
डोर खींचे चाहे तू जितना भी,
अपनी मर्ज़ी से ही ये कदम बढ़ेंगे।
अपनी मर्ज़ी से ही ये कदम रुकेंगे।