कैसे तय होगा
कैसे तय होगा
जो मैं कहूँ वो तुम कहो - ज़रूरी नहीं
फिर जो तुम कहते हो वही
मैं भी कहूँ - क्यूँ ज़रूरी होता है ?
मैं तो मानती हूँ कि विचारों की स्वतंत्रता ज़रूरी है
अपना अपना स्पेस ज़रूरी है
तुम भी मानते हो ...
तभी मेरी बात से अलग होकर
तुम उसे सहज मानते हो
पर मेरे अलग विचार से
तुम बिफर उठते हो !
यह तो गलत है न ?
विचारों में उम्र , स्त्री पुरुष ,
जाति धर्म का पैमाना नहीं होता
अनुभव मायने रखते हैं
लेकिन अनुभव भी उम्र के
मोहताज नहीं होते !
चलो उदाहरण से समझाती हूँ -
बचपन चिंताओं से मुक्त होता है
अतीत, भविष्य के भय से कोसों दूर ...
लेकिन क्या यह अक्षरशः सत्य है ?
नहीं ,जिन घरों में शांति नहीं होती
जिन घरों में रोटी नहीं होती
जिन घरों में धमकियां होती हैं
वे किसी दिन की शांति में
भी डरे ही होते हैं
एक दिन भरपेट खाकर भी
वे भविष्य से भयभीत रहते हैं
एक दिन कोई सर पे हाथ रखता है
तो वे बिना धमकी आशंकित होते हैं
शांति में धमाकों की आवाज़ सुनते हैं
तो कैसे तय होगा कि तुमने जो कहा वही सही है
मेरी या उन बच्चों की सोच गलत ?
त्योरियों पर नियंत्रण रखो
और सही जवाब दो ...