बुलाती है मेरी माँ
बुलाती है मेरी माँ
खुशनसीब हैं वो लोग जिनके पास महल नहीं।
वो लोग जो गहनों को खुशी और महलों को ख्वाहिश का करार देते हैं
क्योंकि खुदा उन्हें महलों और गहनों के बदले आसमान उधार देते हैं
और मुझे इस महल के मालिक मेरी आज़ादी के बदले रोज़ एक सोने का हार देते हैं
महल के पहरेदारों -
इस फंदे को देखो ज़रा, छोड़ो मुझे, कर दो बस एक गुनाह कर दो, मुझे इस महल से रिहा कर दो
मुट्ठी भर आसमान लिये मुझे बुलाती है मेरी माँ।
जिस पल तू मुझे यहां लाया था
उसी पल मेरी रूह का सबसे मासूम टुकड़ा तेरे महल की दहलीज पर गिर गया था
और तूने दरवाज़े बंद कर दिये
तब से मेरी रूह सीयाह बन गयी
और मेरी माँ की दुआ तेरे लिये आह बन गई
महल के बच्चों-
ज़रा आज़ादी का सोचो, आसमान को देखो
अब इस झ़ूठी शान को कह दो ना
मेरी रूह का गिरा हुआ टुकड़ा लिये मुझे बुलाती है मेरी माँ
क्यूं मुझ पर बरसाया
क्यूं मेरी कोख मे पड़ा नन्हा फूल गिराया
सिर्फ इसीलिए की उस पर तेरा नाम ना था
मरा नहीं वो बादलों में रहता है
ऋतु-वार में आता है मुझे माँ कहता है।
महल की औरतों-
जिस तरह मेरे माथे से पसीना पोंछती हो
उसी तरह मेरे माथे पे गड़ा, बंधन से भरा नसीब भी उतार कर फेक दो
चलो हम उड़ चलें बादलों की तरह
हो जाए इन गिरहों से रिहा
अपने हाथोंं कि लकीरों में मेरा आज़ादी से भरा नसीब लिए मुझे बुलाती है मेरी माँ
महल के राजा-
तुझे एक बात है बतानी
जिस वक्त तू मुझे लेने था आया
उस वक्त मैं लिख रही थी लहू-मांस की कहानी
तूने मुझे घसीटा और मेरी कलम गिर कर टूट गई
मिल गया तुझे मेरा जिस्म, जा जश्न मना
पर ज़रा सोच मेरे चार दिन के जिस्म से तुझे क्या मिला
ना है गैरत ना है कोई रिश्ता ना तेरा आसमां
खुश हूँ मैं के मेरे इन्तज़ार मे मेरी टूटी कलम लिए मुझे बुलाती है मेरी माँ।