ज़िंदगी तुम क्या हो?
ज़िंदगी तुम क्या हो?
ज़िंदगी तुम क्या हो
कभी एक मुस्कुराती सहर
कभी एक उदास, मायूस शाम,
कभी हो तन्हा एक बेबस रात,
और कभी खुशियो का पैगाम,
ज़िंदगी तुम क्या हो?
कभी हो माँ सा दुलार
कभी निर्दयी सामाजिक तिरस्कार
कभी हो सखियों की अठखेलिया
और कभी प्रियतम का प्यार…
ज़िंदगी तुम क्या हो?
कभी हो खुशियों का डेरा
और कभी दुखो का घेरा
कभी-कभी तपती दुपहरी
और कभी हो ''रैन बसेरा''
ज़िंदगी तुम क्या हो?
कभी हो प्रियतम, कभी हो मीत
कभी-कभी हो बिछहो का मीत,
कभी-कभी हो खुद की हार
और कभी अपनो की जीत
ज़िंदगी तुम क्या हो?