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Anjali Jha

Abstract

4.9  

Anjali Jha

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जिंदगी की कवायद

जिंदगी की कवायद

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टूट कर ही ऐसे बिखरी हूँ मैं

इतनी आसानी से तुम कहाँ समेट पाओगे,

जब टूट रही थी तब तुम कहाँ आये

फिर अब तुम क्या कर पाओगे।


समंदर से भी ज्यादा गहरी हूँ मैं

इतने आसानी से तुम हटा न पाओगे,

काँटों की तरह उभरी हूँ मैं

हाथ जो अगर लगाओगे तो चुभ जाउंगी।


तुम चाहते क्यों हो ऐसे मेरे

जिस्म पे फतह करना,

जब ये दिल ही नहीं अब तेरा तो

अब मुट्ठी में कैसे भर पाओगे।


तुम तो खुद से ही खुद को हार गए हो

फिर मुझे तुम कैसे जीत पाओगे,

यूं ही तुम मुझे रुलाकर मुझ पे

फतह करने की तसल्ली रख पाओगे।


बस पलटी जो अपनी वार तो

चीख सुनकर ही तुम चकनाचूर हो जाओगे।

खामोश हूँ मैं जब तक तुम तब तक

ही कमजोर समझ पाओगे।


अगर कभी भड़की जो मेरी अंगार तो

फिर कभी न जीत पाओगे,

कहने को हाँ हूँ मैं एक लड़की तो

क्या मोम समझकर पिघला जाओगे।


कोशिश न करना कभी मुझे हासिल करने की

ना मैं तेरी थी ना कभी हो पाऊँगी,

बिखरी हुई मोती हूँ मैं इतने

आसानी से रेत से कैसे निकाल पाओगे।


जिंदगी से बहुत जंग लड़ चुकी हूँ मैं

इतने आसानी से कैसे हार जाउँगी,

रेगिस्तान की बंजर भूमि हो या हिमालय का हिम

शीश सब जगह पीछा कर जाऊँगी।,


हैं हौसले बुलंद मेरे इतने

आसानी से कहाँ मार कर जा पाओगे।


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