गाँव से शहर की ओर
गाँव से शहर की ओर
कुछ उदास से दिख रहे हैं और
कुछ लोगों का चेहरा खिल रहा हैं।
मेरा एक बड़ा पुराना सा गांव है,
जो कि अब शहर से मिल रहा हैं।
सड़कें बिछ रही हैं पत्थरों से,
पगडंडियों पर काली परते छायीं हैं।
खेत खलिहान में मिट्टी वही है पर,
किसानों की जगह मशीनों ने बनाई है।
कुल्हाड़ी चल रही है पेड़ों पर,
बिन हवाओं के हर पत्ता हिल रहा है।
सच कहतीं हूँ देखा है मैंने कि,
मेरा गाँव शहर से मिल रहा है।
कच्चे घर को नया रूप है अब और
पक्के मकानों का साथ मिला।
मिट्टी के खिलौने के बजाय,
मोबाइल बच्चों के हाथ मिला।
कहानियों में अब रूचि कहाँ,
टेलीविजन मन को भाता है।
हिंदी के सुंदरता की समझ नहीं,
अंग्रेजी थोड़ा-थोड़ा सबको आता है।
रिश्ते धीरे धीरे नीचे गिर रहे हैं,
पर मकान दो महल ऊंचा बन रहा है।
तरक्की हो रही है यहां क्योंकि,
मेरा गांव शहर की ओर बढ़ रहा है।