बदल रहा जमाना
बदल रहा जमाना
जब कभी कुदरत बनी होगी
ईश्वर ने कुछ ना कुछ अच्छा ही सोचा होगा
प्राकृतिक सौंदर्य को संवारने
जरूर इंसान बनाया होगा।
कितनी खूबसूरत है ना ये नदियां
सुमधुर गुंजन मन मोहती
जैसे कोई हसीना
कितनि हसीं ये वादियां
रम्य रस बरसती मद मस्त
जैसे पलमें गुजरती सदियाँ।
सुरीली आवाज़ें पक्षियों की
एक अलग ही आकर्षण की जरिया।
कहाँ है वो दिन
मिट्टी की खुशबू हवाओं का स्वाद।
पूछी बूढ़ी दादी बच्चों से कहां है वो दिन
दिन व दिन बदल रहा जमाना हो रहा विकास
कच्चे रास्ते पक्के हो रहे
ऊंची इमारतें बन रही।
हर एक गाँव शहर हो रहा
हो रहा विकास।
इसी विकास में तो नहीं कहीं
छूट रहा अपना अस्तित्व।
इंसान से पशु हो रहे
नासमझ से खुद को रोंद रहे
अब शर्मिन्दगी भी नहीं खुद पे
कैसे बचाएंगे अपना अस्तित्व।