भारत का फौजी
भारत का फौजी
शत शत प्रणाम हैं उन वीरों को, जिन्होंने
सबकुछ अपना वार दिया देकर बलिदान
अपने प्राणों का ,
हमें विजय दिवस का उपहार दिया
सुबह सौम्य थी शांत दोपहरी शाम भी सुहानी थी
रात के सन्नाटे में पवन की बहती खूब रवानी थी
मौसम बदला, ओले बरसे बर्फ की चादर फ़ैल गयी
चिंताओं की कुछ रेखाएं चेहरे पर वो छोड़ गयी
पिछले कुछ समय से मौसम का, अपना
अज़ब रोबाब था
कभी बर्फ हुए कभी फव्वारे, क़हर बे हिसाब था
दो हफ्तों से ऊपरी टुकड़ी से कुछ बात न हो पाई थी
दो दिन पहले शायद उनकी अंतिम चिट्ठी आई थी
बाकी ठीक था वैसे तो पर कुछ शब्द ही भारी थे
"बन्दर ,चोटी, छत" और शायद एक शब्द "तैयारी" थे
लिखने वाले ने इन शब्दों को बार बार दोहराया था
शायद उसने हमको अपने इशारों में कुछ
समझाया था
चिट्ठी मिलते ही अफ़सर ने सारा काम छोड़ दिया
शब्दों के मायने ढूढ़ने में सारा अपना ज़ोर दिया
इतने ठण्ड में चोटी पर तो हाड़ मांस जम जाते हैं
कैसे बन्दर है जो ऊपर मस्ती करने आते हैं?
क्या है राज़ चोटी पर और काहे की तैयारी है?
पूरी बात समझने की इस बार हमारी पारी है?
पांच बार पढ़ा चिट्ठी को हर शब्दों पर गौर किया
सोच समझ कर उसने फिर कुछ करने का
ठौर लिया
चूक हुई है बहुत बड़ी उसने अब ये जाना था
लिखने वाले ने शायद दुश्मन को पहचाना था
जिस चौकी पर फ़ौजी अपनी जान लुटाए
रहता था
आज कोई शत्रु उसपर ही घात लगाए बैठा था
खुद को अब तैयार करने, इतना सा खत काफी था
दुश्मन को औकात दिखाने हर एक फ़ौजी राज़ी था
जागो देश के वीर सपूतो भारत माँ ने आह्वान किया
एक बार फिर दुश्मन ने देश का है अपमान किया
लहू अब अंगार बनकर रग रग में है दौड़ रही
शत्रु को न टिकने देंगे अब हर सांसे बोल रही
हम नहीं चाहते युद्ध कभी पर जो हम पे थोपा
जाएगा
कसम है हमे मातृभूमि की वो अपनी मुँह की
खाएगा
थाम बन्दुक चल पड़ा फ़ौजी ऊँची नीची पहाड़ों पर
टूट पड़ने को आतुर वो दुश्मन के हथियारों पर
राह कठिन थी सीमा तक की बर्फ की चादर फैली थी
और कहीं पर चट्टानों की ऊँची ऊँची रैली थी
एक बार चला जो फ़ौजी फिर रुकना न हो पाएगा
चाहे कितने भी मुश्किल हो वो मंज़िल को तो पाएगा
ऊपर बैठे ना सोचे दुश्मन डरने की कोई बात नहीं
रोक सके जो भारत की सेना ऐसी चट्टानों की औकात
नहीं
जा पहुंचा वो चौकी तक और जोरों से ललकार दिया
समय शेष है लौट जा कायर दरवाज़ा मैंने खोल दिया
जो ना लौटा अब भी तू तो यही पर मारा जाएगा
देश की मिट्टी पास न होगी यहीं दफनाया जाएगा
तभी एक सनसनाती गोली कान के पास से गुज़र गयी
एक बार तो उसकी भी सांसे बिलकुल जैसे सिहर गयी
सोचा था के दुश्मन को वो बातों से समझा देगा
पर ये था एक ढीठ आतंकी हर बात पर ये देगा देगा
इस बार देश का फ़ौजी बन्दुक ताने खड़ा हुआ
दुश्मन को धुला चटाने की ज़िद पर हो अड़ा हुआ
पच्चीसों को मारा उसने कइयों का संहार किया
एक एक को चुन चुन कर दुश्मन पर प्रहार किया
देख उसका रौद्र रूप यूं शत्रु भय के काँप गए
कुछ लड़े, जा छुपे कुछ और कुछ पीठ दिखा
कर भाग गए
एक बार फिर वो लौटे धोखे से फिर वार किया
पीछे से फिर सीना उसका भाले से आर पार किया
समझ गया वो मरना ही है तो फिर अब घबराना क्या?
कम से कम इन दस को मारूं यूँ मुफ्त में जान
गँवाना क्या?
तीन के उसने गर्दन काटे तीन को बीच से चिर दिया
तीन के सीने छेद कर दिए भुजाओं से अपने
पीस दिया
लड़खड़ातेकदमों से फिर चौकी तक वो जाता है
कांपते हुए अपने हाथों से तिरंगे को फहराता है
मरते हुए बोल थे उसके एक बार फिर आऊँगा
जो भी कर्म अधूरे रह गए अगले बार कर जाऊँगा
देश पर मिटने वाला हर फ़ौजी हिम्मत वाला है
धन्य है वो जननी जिसने ऐसे लाल को पाला है