रेलगाड़ी का सफर
रेलगाड़ी का सफर
पहले रेलगाड़ी का सफर
कितना मजे़दार होता था
घंटों का लंबा सफर भी
हँसते और बात करते
कुछ पल मे गुज़र जाता था
वो ताश के पत्ते, लूडो खेलना
कभी ऊपर कभी नीचे बैठना
फिर मम्मी का वो डाँटना
आज भी बहुत याद आता है
खिड़की से पहाड़ी टीले देख
खूब खुश हो जाते थे
अनजान यात्री भी थोड़ी देर में
जाने पहचाने लगते थे
बिना भेदभाव के
सब मिल बाँट कर खाते थे
प्लेटफोर्म के आते ही
दरवाज़े पर खड़े हो जाते थे
कितनी मीठी यादें बस
एक सफर से ले जाते थे
पर पहले सी अब बात नहीं
घंटों का सफर आज भी
तेज़ गति से जल्दी गुज़र जाता है
पर ना कोई बात ना कोई खेल
अपनी धुन में समय निकल जाता है
अपना स्टेशन आते ही
यात्री चुपचाप रेलगाड़ी से उतर जाता है