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Vikash Kumar

Drama Tragedy

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Vikash Kumar

Drama Tragedy

किसान की व्यथा

किसान की व्यथा

1 min
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आँखों में अश्रू की धारा,

धमनी में लहू सूख गया,

काँखों भूख दबी थी उसके,

अंतड़ियों मे सब सूख गया।


टूट गई है आज आस,

धरती पुत्र किसान की,

अमुआ की डाली पर,

झूली माटी पालनहार की।


धूल फाँकता रहा रात दिन,

अश्रू से अन्न उगाता है,

यह देखो धरती का पालन्हार,

सपनों की फसल उगाता है।


टूट गई है आज आस,

एक बेटी के बाप की,

अमुआ की डाली पर,

झूली माटी पालनहार की।


सियासतों से आश्वासन पाता,

कर्ज कभी ना कम हो पाता,

रोटी पर प्याज रख कर वह खाता,

फाइव स्टार को पकवान उगाता।


आज कलम दवात टूटी है,

बेटी बेटों की आस की,

अमुआ की डाली पर,

झूली माटी पालनहार की।


आज रोएगी पत्नी प्यारी,

आज रोएगी बेटी न्यारी,

धरती पुत्र विदा लेता है,

धूल धूसरित फिर फिर होता है।


उठ गई अर्थी आज देखो,

बिन ब्याही बेटी के बाप की,

अमुआ की डाली पर,

झूली माटी पालनहार की।


कल भी दुःखों के पहाड़ खड़े थे,

राहों में जो कांटे बिछे थे,

ब्याज पर ब्याज चढ़ती जाती,

फसल हमेशा यूँ बिक जाती।


देखो मक्कारी सत्ता में,

बैठे इन दलाल की,

अमुआ की डाली पर,

झूली माटी पालनहार की।


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