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Bhavna Thaker

Romance Tragedy

5.0  

Bhavna Thaker

Romance Tragedy

'क्यूँ मिले तुम'

'क्यूँ मिले तुम'

1 min
260


ज़िन्दगी के इस सफ़र में

क्यूँ मिले इस पड़ाव पर

अपने से ज्यादा अपने

अजनबी होकर भी मेरे सपने,

हूँ मैं तुम्हारा पहला प्यार

ना तुमने उम्र देखी न मिले रूबरू

बस फेसबुक की दोस्त को तुम

अपना दिल दे बैठे,

हाँ है तुम्हारी पाक मोहब्बत

रुह की तल से चाहो मुझको

मजबूरी ने बाँधा मुझको

ना एक हाथ छुड़ा पाऊँ

ना हाथ तेरा थाम सकूँ

ना खत्म कर पाऊं पुराने से रिसकर

ना संग तेरे चल सकूँ,नया सफ़र शुरु कर,

आस-पास तू चाहत का दरिया लिये खड़ा

बूँद भी ना पा सकूँ तेरे आबशार की

नैंनो में नीर लिये तुझको निहारती पल-पल

बस तेरे ही खयालों से खेलती,

मांगता तू मुठ्ठी भर प्यार का एक टुकड़ा भर

बस में अगर होता कर दूँ पूरा समर्पण

कैसे मैं आगे बढूँ, हो जाऊँ समर्पित,

मांग सोहे सिंदूर संग कंठ धारण धागा किया

पिरोकर काले मनके संग वचनबद्ध मजबूर हूँ

नाम भी ना दे सकूँ रिश्ता है कौनसा

हक ना जता सकूँ ना नाम कोई दे सकूँ

ये भी न जानती होगा अंजाम क्या

हिम्मत ना हौसला जग से प्रतिकार का,

जाओ तुम यूँ ना देखो प्यासी निगाहों से

खाली है दामन दे ना सकूँ कुछ भी

कर ले हम कामना, जो है आगे जनम कोई

करती हूँ वादा कि मिलूँगी तुम्हें वहीं॥


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