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Anshu Shri Saxena

Drama

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Anshu Shri Saxena

Drama

कविता

कविता

1 min
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यूँ तो आसाँ नहीं होता

किसी कविता का बन जाना ,

हर वक़्त मुमकिन नहीं होता

लफ़्ज़ों का आकार ले लेना,

दिल का दर्द जब पिघल कर बनते हैं शब्द....

तब होती है इक कविता मुकम्मल !

दिल के घाव जब नासूर बन रिसते हैं,

तब होती है इक कविता मुकम्मल !


कहीं दूर तक अंधेरे गलियारों में

यूँ ही बिना वजह भटकने के बाद,

जब कहीं रोशनी न आये नज़र

तब होती है इक कविता मुकम्मल !


कभी कभी प्रेम रस से भीगे से

लफ़्ज़ जब करते हैं अठखेलियाँ,

तब होती है इक कविता मुकम्मल !


कभी ख़ुशियों की सौग़ात मिल जाए,

और दिल के तार झंकृत हो जाएँ

तब होती है इक कविता मुकम्मल !


जब कभी यादों की पोटली खुल जाए,

और सोये किरदार बाहर निकल आए

फिर होती है इक कविता मुकम्मल !


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