कविता
कविता
यूँ तो आसाँ नहीं होता
किसी कविता का बन जाना ,
हर वक़्त मुमकिन नहीं होता
लफ़्ज़ों का आकार ले लेना,
दिल का दर्द जब पिघल कर बनते हैं शब्द....
तब होती है इक कविता मुकम्मल !
दिल के घाव जब नासूर बन रिसते हैं,
तब होती है इक कविता मुकम्मल !
कहीं दूर तक अंधेरे गलियारों में
यूँ ही बिना वजह भटकने के बाद,
जब कहीं रोशनी न आये नज़र
तब होती है इक कविता मुकम्मल !
कभी कभी प्रेम रस से भीगे से
लफ़्ज़ जब करते हैं अठखेलियाँ,
तब होती है इक कविता मुकम्मल !
कभी ख़ुशियों की सौग़ात मिल जाए,
और दिल के तार झंकृत हो जाएँ
तब होती है इक कविता मुकम्मल !
जब कभी यादों की पोटली खुल जाए,
और सोये किरदार बाहर निकल आए
फिर होती है इक कविता मुकम्मल !