बिंधी हुई मछली का गीत
बिंधी हुई मछली का गीत
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मछुआरे!
अब यह निर्मल बंसी
खींच ले!
बंसी
जिस पल तूने डाली थी
उस पल से
बिंधी हुई है;
एक आग-
-अँधियारे की-
निर्जल प्राणों में
रुँधी हुई है।
अँधियारे!
अब तो पापी पलकें
मींच ले!
ठस-
पत्थर-सन्नाटे के दिल में,
एक बोल
महक रहा है;
प्यास-
कर रही चिरौरियाँ, लेकिन,
यह पानी
दहक रहा है।
बदरा रे!
कण-कण को अमृत से
सींच दे!
मछुआरे!