ग़ज़ल चाँद उतरा है
ग़ज़ल चाँद उतरा है
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चाँद उतरा है ज़मीं पर पास जाकर देखिये
ख्वाब है वो या कि सच है आजमाकर देखिये।
सिलवटें बिस्तर का दामन छोड़ देंगी यूँ करें
जागती आँखों से उनको मुस्कुरा कर देखिये।
रात दिन गुलज़ार होंगे सारे गम होंगे धुआँ
फूल शाखों से झरेंगे खिलखिलाकर देखिये।
ये तो बस दस्तूर है वो आकर गले से हैं लगे
गर निभानी है मुहब्बत दिल मिलाकर देखिये।
हम वही हैं आप हैं जो मानिये मेरा कहा
बस जरा सा भेद के पर्दे हटाकर देखिये।
क्यूँ लगाये घूमते इतने मुखौटे रात दिन
आईना लेकर खड़े हम पास आकर देखिये।
बंदगी क्या इश्क क्या है आज सुनिये "गीत" से
यूँ किसी के प्यार में खुद को मिटाकर देखिये।