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Shweta Chaturvedi

Abstract

5.0  

Shweta Chaturvedi

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रे मन! कैसे धीर धरूँ..

रे मन! कैसे धीर धरूँ..

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232


रे मन! 

कैसे धीर धरूँ


नैनन में भर लूँ पिया को

कैसे अंग लगूँ


तरपत है जिया मोरा ऐसे

का से सयन करूँ


रे मन! 

कैसे धीर धरूँ


लिपटी रहूँ पिया संग कैसे

देह का चंदन घिसूँ,


महकी रहूँ कस्तूरी जैसे 

साँसन में कैसे रिसूँ


रे मन! 

कैसे धीर धरूँ


बन चकोर मैं चाँद पिया की

चारों ओर फिरूँ,


घोंट के पी ले मोहे पिया 

भंग सी कैसे घुटूँ


रे मन!

कैसे धीर धरूँ..


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