अब ना कोई रंग है भाता
अब ना कोई रंग है भाता
तुम क्या रुठे फागुन रुठा
टेशू के रंग फ़िके
सारे मौसम बेरंग से
रंग ना कोई भावे
सुहागिन सब खेल रही
मैं देखूँ दूर खड़ी ही।
कितने हसीं थे सारे मौसम
यादों में अब रह गये
लाल उदासीन
नीले गम है
लोचन मांहि खेले
तन चिथड़े मेरे शहीद के
मेरी पुतलियों को घेरे।
ठहर गये मेरे सारे लम्हे
शान ए तिरंगा मेरे
होली दिवाली चली गई
संग तुम्हारे प्यारे
झोली में मेरी पड़े हुए हैं
अब आँसू के ठेले।
जला दिये सुख सारे अपने
माँ वतन की साँसें
कभी ना रुकने पाएँ
ज़िंदगी ही अब ठिठक गई
खुशियों की दहलीज़ पे
कैसा फागुन, कैसी होली।
बेरंगी बेनूर हर लम्हा
सारे दिन है एक से अब तो
शहीद की दुल्हन के।।