नजर
नजर
सारी उम्र पहचान बनाने में निकल गई
एक वक़्त बाद दो गज़ ज़मीन नसीब आई
पीछे देखा तो एक इतिहास नजर आया
कुछ कहानियां उसमें धुँधली नजर आई।
एक इमारत खड़ी की थी जिसने कभी
वो मूरत अब वृद्धाश्रम में नजर आईं
शीशे के आशियाने में छिपकर देखा तो
रंगीन ज़िन्दगी नरक से बत्तर नजर आई।
तन्हा रहकर खोजने निकला वो खुशी
अपनों के बीच रहा तो वहां नजर आई
बैचेनी का बादल उपर मंडराते देखा था
उम्मीदों की कुछ बूंदे उनमें नजर आई।
इस शहर की हवा भी बदरंग हो गई है
लोगों को धुएँ में ही शौहरत नजर आई
हर तरफ कतारों में घुट रहा है जीवन
उसकी आँखों में भी खामोशी नजर आई।
जिम्मेदारी बोझिल हो गई है लोगों में
घर की दीवारें भी बेजुबान नजर आई
वक़्त मिलता नहीं अपनों के लिए अब
चौकोर स्क्रीन पर ये दुनिया नजर आई।