माँ
माँ
माँ आती है साल में दो बार
लेकिन क्या कभी किसी ने
उनको अपने बच्चों से
मिलते देखा है
मुझे तो नहीँ लगता
कि कभी हाल भी पूछती हैं
और बालों पर हाथ रख
कभी सहलाया भी करती है
लोग कहते हैं
माँ आदिशक्ति है
शायद इसीलिए केवल
शक्तिशालियों के पास जाती होगी
गरीब के लिये माँ केवल ठेला है
बच्चों के लिये माँ केवल मेला है
नौकरी वाले के लिये छुट्टी है माँ
औ' व्यापारी के लिये सीजन है माँ
माँ सिर्फ कहानियों में
महिषासुर को मारती है
माँ सिर्फ तस्वीरों में
अस्त्रों को धारती है
वरना फ़िर रहे
गली गली राक्षस
क्यों नहीं उनका दमन करती
क्योंकि उनके द्वारा ही
ज्यादातर पंडालों में है वो सजती?
बेटे बेटियों को ही
दोषी बतलाती है दुनिया
माँ तेरी गलती नज़र
नहीं किसी को आती
क्योंकि खौफ तेरा काम कर रहा
अब पूजा, पूजा थोड़े ही है
वो तो बाजार बन गयी
बन के बोनस बँट रही
सच बताऊँ माँ
बुरा मत मानना
इंतजार लोग तेरा नहीं
बोनस का करते हैं
वे इंतज़ार छुट्टी मेले
व शॉपिंग का करते हैं
वाह माँ पेट क्या भरोगी तुम
किसी गरीब का
तुम तो भोग प्रसाद भी अब
बेचने लगी हो
गरीब की थाली की खिचड़ी
भी अमीरों ने छीन ली
अब लोग तुमसे मिलने नहीं
उसे चखने पण्डाल आते हैं
माँ ऐसी होती नहीं
जैसी तुम बन गयीं हो
पुजती हो नवरूपों में
एक रुप नहीं दिखलाती हो
हाल रहा गर यही तुम्हारा
देखना लोग तुझको भूल जायेंगे
भले बनेंगे पण्डाल वातानुकूलित
भले मूर्तियाँ होंगी समकालीन
भले भोग खूब खिलाया जायगा
पर बच्चों के मुख से
नाम तुम्हारा नहीं आयेगा
माँ तुम रूठ जाओ भले मुझसे
मुझको इसका डर नहीं
पर शक्ति तुमको तुम्हारी
याद मैं दिलाता हूँ
हो यदि वाकई तुम
तो भूखे नंगों का उद्धार करो
माँ फ़िर एक बार आओ
और दुष्टों का संहार करो।